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::'''सृष्टि'''
मिट्टी का गहरा अंधकार
डूबा है उसमें एक बीज,--
::पाने को है निज सत्व,--मुक्ति!
::जड़ निद्रा से जग कर चेतन!
आः, भेद न सका सृजन-रहस्य
कोई भी! वह जो क्षुद्र पोत,
उसमें अनन्त का है निवास,
वह जग-जीवन से ओत-प्रोत!
::मिट्टी का गहरा अन्धकार,
::सोया है उसमें एक बीज,--
::उसका प्रकाश उसके भीतर,
::वह अमर पुत्र, वह तुच्छ चीज?
'''रचनाकाल: अप्रैल’१९३५मई’१९३५'''
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