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...के नाम / अलेक्सान्दर पूश्किन

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पलक आत्मा ने फिर खोली
फिर तुम मेरे सम्मुक सम्मखु आईं,
निर्मल, निश्छल रूप छटा-सी
मानो उड़ती-सी परछाईं।
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