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|संग्रह=पत्थर हो जाएगी नदी / मोहन राणा
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गूंगे शब्दों से
भरा मुँह
शैवालों से भरी किताबें
आज का दिन भी नहीं कहता
कुछ नया,
खोल देता हूँ खिड़की दरवाजे
किसी आशा में
'''रचनाकाल: 5.9.2001</poem>