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|संग्रह=नियति,इतिहास और जरायु / श्रीनिवास श्रीकांत
}}
{{KKCatKavita}}<poem>बर्फ़ में दफ़नाये जाने के बाद भी
शहर नहीं मरा
हवेलियां खड़े रहे
ध्यानस्थ खड़े रहे
देवदारुओं से लिपटी