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|संग्रह=संवर्त / महेन्द्र भटनागर
}}
{{KKCatKavita}}<poem>अप्राप्य रहा —<br>वांछित,<br>कोई खेद नहीं।<br><br>
तथाकथित<br>आभिजात्य गरिमा के<br>अगणित आवरणों के भीतर<br>नग्न क्षुद्रता से परिचय,<br>निष्फलता की<br>उपलब्धि !<br>कोई खेद नहीं।<br><br>
सहज प्रकट<br>तथाकथित<br>निष्पक्ष-तटस्थ महत् व्यक्तित्व का<br>अदर्शित अभिनय; <br> असफलता की<br>उपलब्धि !<br>
कोई खेद नहीं।
</poem>
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