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रोज़ होती है / अश्वघोष

674 bytes added, 06:14, 3 जनवरी 2010
|संग्रह=जेबों में डर / अश्वघोष
}}
[[Category:गज़ल]]{{KKCatGhazal}}
<poem>
रोज़ होती है यहाँ हलचल कोई
टूटता है आईना हर पल कोई
राह भटके इन परिन्दों के लिए
ढूँढ़ना होगा नया जंगल कोई
 
नाच उठतीं क़ागज़ों की कश्तियाँ
आ गया होता इधर बादल कोई
 
देश तो ये अब जलेगा शर्तिया
क्या करेगी आपकी दमकल कोई
 
बेवजह मत घूमिए यूँ 'अश्वघोष'
फाँस लेगी आपको दलदल कोई
</poem>
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