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एक गहरा दर्द / अश्वघोष

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आदमी का दम निकलता जा रहा है
आ रही है क्रांतियाँ बुल्ड़ोज़रो बुल्ड़ोज़रों से
देश का नक्शा बदलता जा रहा है
हाथ उनके खून ख़ून में भीगे हुए हैंफर्ज़ फ़र्ज़ वहशत में बदलता जा रहा है
ग्रीष्म में भी चल रही ठंडी हवाएँ
चेतना का ज़िस्म जिस्म गलता जा रहा है
ऐ मेरे हमराज़, बढ़कर रोक ले
रोशनी को तम निगलता जा रहा है
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