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Kavita Kosh से
:टेक सिर ध्वज का लिये अवलम्ब,
:आँख से झर - झर बहाते अम्बु।
:भूलकर का भूपाल का अहमित्व,
:शीश पर वध का लिये दायित्व।
जा चुकी है दृष्टि जग के पार,