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Kavita Kosh से
उफ री! अधीरता उस मुख की,
वह कहना उसका "रुको, रुको,
मोहन! डाली से झुको, झुको।"
मैं बिकी समय के हाथ पथिक,
मुझ पर न रहा मेरा बस है।
है व्यर्थ पूछना बंसी में
कोई मादक, मीठा रस है?