भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
{{KKRachna
|रचनाकार=पवन करण
}}{{KKCatKavita}}<poem>
इतनी तेज़ बारिश तो नहीं हो रही इस वक़्त
फ़ालतू ही रुक गए यहाँ, भीगते हुए ही घर पहुँच जाते
तो क्या बिगड़ जाता, कोई मिट्टी के तो नहीं बने हम
जो गल जाते, गल कर बह जाते पानी में
कम से कम अदालत में पेशी से वापस लौटते
इन क़ैदियों से तमाशा बनने से तो बच जाते
वह साथ थीं वरना इन जालीदार बंद लारियों में
जानवरों की तरह भरकर जेल वापस लौटते कैदियों में से
एक भी मेरी तरफ़ ध्यान नहीं देता
देखता भी नहीं मेरी तरफ़ नज़र उठाकर
वह साथ थीं तभी तो उनके झुंड में से मेरे लिए
एक सामूहिक स्वर उठा क्यों बे लड़की बाज!
उसने दबाते हुए अपनी हँसी मुंह फेर लिया मेरी तरफ़
और मैं अपने सामने अचानक रुक गई
उस लारी में भरे क़ैदियों को अपनी खिल्ली उड़ाते चेहरे देखता रहा
जाली से बाहर झाँकने के लिए एक दूसरे पर चढ़-बैठ रहे
इन क़ैदियों में सभी तरह के अपराधी होंगे
कोई हत्यारा होगा कोई चोर तो कोई लुटेरा
किसी ने किया होगा कहीं कोई गबन
मामूली सा जेबकतरा भी होगा एक न एक ज़रूर
क्या इनमें कोई प्रेमी भी होगा
जो सोच रहा होगा इस वक़्त भी अपनी प्रेमिका के बारे में
कम से कम उसे तो क़ैदियों को हम पर इस तरह
फब्तियाँ कसते देख ज़रूर बुरा लगा होगा
शायद वह उन्हें रोकना भी चाहता होगा
इन क़ैदियों में कोई ऐसा भी होगा जिसने किया होगा
अपने ही बीबी-बच्चों का कत्ल
सबसे पहले कुल्हाड़ी से काटी होगी गहरी नींद में सोती पत्नी की गर्दन
एक-एक कर फिर तीनों बच्चों को सुला दिया होगा
हमेशा के लिए, ओहिर लगा ही ली होगी ख़ुद को फांसी
लेकिन मार नहीं पाया होगा ख़ुद को
सोचता हूँ अब क्या सोचता होगा वह ख़ुद के बारे में
क्या पत्नी की चूडियों की आवाज़ और
बच्चों की किलकारियाँ अब भी गूंजती होंगी उसके कानों में
क्या इन क़ैदियों में कोई जेबकतरा भी होगा ऐसा
जिसने मोटर स्टैंड पर किसी ऐसे आदमी की
काटी होगी जेब जो बूढी माँ की ख़बर मिलने पर
शहर से क़र्ज़ लेकर गाँव जा रहा होगा भागा-भागा
जेब कट जाने पर जो बैठा रह गया होगा वहीं
बसों को आता-जाता देखता
ड्यूटी पर खड़ी पुलिस ने भी बेरुखी के साथ
थाने में रपट लिखाने कह दिया होगा जिससे
इन कैदियों में क्या ऐसे पिता भाई और
चाचा भी शामिल होंगे जिन्होंने पंचायत का फैसला
मानते हुए अपनी ही लड़की को
प्रेमी के साथ उसके लटका दिया होगा पेड़ पर
प्रेम करने के बदले दे दी होगी उसे फांसी
क्या अब यहाँ जेल में वह मासूम सी लड़की और
उसका प्रेमी उनके सपनों में आता होगा,
और क़ैदियों के बीच वे किस तरह करते होंगे
अपनी उस वीरता का बखान
लारियों में भरकर पेशी से कारागार वापस लौटते
इन क़ैदियों में एक चेहरा मेरा भी हो सकता है कभी
फ़िर क्या जो इस वक्त मेरे साथ
बारिश से बचने खड़ी है यहाँ इस छज्जे के नीचे
जो मेरे साथ चाहती है जीना और मरना
जो मेरे साथ देखना चाहती है दुनिया
जो मेरे साथ पढ़ना चाहती है सब
जो मेरे साथ लिखना चाहती है कविता
क्या वह मुझसे मिलने तब-तब आया करेगी
जब-जब जेल से लाया जाएगा मुझे अदालत पेशी पर
क्या वह मुझे लारी में जेल जाते देख बहाया करेगी आँसू
आया करेगी जेल में दरवाज़े तक पीछा करते हुए मेरा
तुम मुझे अपने मन के दरवाज़े पर कुत्ते की तरह
बंधा रहने देना, भगाना मत कभी
मैं वहां बंधे-बंधे भौंकता रहूंगा
करता रहूंगा तुम्हारी रक्षा सुनता रहूंगा तुम्हारी,
कुत्ते की तरह नहीं वफ़ादार प्रेमी की तरह मरूंगा फिर एक दिन
क्या वह कभी-कभी बनाकर अपने हाथों खाना
टिफ़िन भरकर लाया करेगी मेरे लिए जेल में
</poem>