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|रचनाकार=महादेवी वर्मा
|संग्रह=नीरजा / महादेवी वर्मा}} {{KKCatKavita}}{{KKCatGeet}}
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उर तिमिरमय घर विमिरमय
काँच से टूटे पड़े यह
स्वप्न, भूलें, मान तेरे;
फूलप्रिय पथ शूलमय
पलकें बिछा सुकुमार ले!
तृषित जीवन में घिर घन-
बन; उड़े जो श्वास उर से;
पलक-सीपी में हुए मुक्ता
सुकोमल और बरसे;