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टुकदुम-टुकदुम आती चुहिया / कुमार मुकुल
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15:40, 15 फ़रवरी 2010
|रचनाकार=कुमार मुकुल
}}
टुकदम-टुकदम आती चुहिया
आंखें गोल नचाती चुहिया
क्षण-भर को जो आंख लगे तो
करने लगती धींगा-
मुस्तीह
मुस्ती
लगा चौकडी खाट के नीचे
घर भर में कर जाती गश्ती
.
पर जैसे ही आंख खुले तो
दुलहन सी शर्माती चुहिया
टुकदम.....
कुमार मुकुल
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