भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
सिर पर बोझ लिये भी दुर्वह, मैं चलता ही आया अहरह
मिला गरल भी तुझसे तो वह, अमत अमृत मान कर पिया
जग ने रत्नकोष है लूटा, मिला तमबूरा तंबूरा मुझको टूटा
उसपर भी जब भी स्वर फूटा, मैने कुछ गा लिया
Anonymous user