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Kavita Kosh से
तुझको देखा है मेरी नज़रों ने तेरी तारीफ़ हो मगर कैसे
तू चली आए मुस्कुराती हुई तो बिखर जाएं हर तरफ़ कलियाँ
तू चली जाए उठ के पहलू से तो उजड़ जाएं फूलों की गलियाँ
जिस तरफ़ तरफ होती है नज़र तेरी उस तरफ़ तरफ क़ायनात होती है
तू निग़ाहों से ना पिलाए तो अश्क़ भी पीने वाले पीते हैं