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|रचनाकार=गुलज़ार
|संग्रह =
}} <poem>हाथ छूटे भी तो रिश्ते नहीं छोड़ा करते <br>वक़्त की शाख़ से लम्हें नहीं तोड़ा करते<br><br>
जिस की आवाज़ में सिलवट हो निगाहों में शिकन <br>ऐसी तस्वीर के टुकड़े नहीं जोड़ा करते <br><br>
शहद जीने का मिला करता है थोड़ा थोड़ा <br>जाने वालों के लिये दिल नहीं थोड़ा करते <br><br>
तूने आवाज़ नहीं दी कभी मुड़कर वरना<br>हम कई सदियाँ तुझे घूम के देखा करते<br><br> लग के साहिल से जो बहता है उसे बहने दो <br>ऐसी दरिया का कभी रुख़ नहीं मोड़ा करते<br><br/poem>
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