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Kavita Kosh से
रोज़े-रिन्दी<ref>शराब पीने का दिन</ref> है नसीबे-दीगराँ<ref>दूसरों की क़िस्मत में</ref>
शायरी की सिर्फ़ क़ूवत <ref>ताक़त</ref> है मुझे
नग़मये-योरप से मैं वाक़िफ़ नहीं