590 bytes added,
09:45, 27 फ़रवरी 2010 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=पद्माकर
}}<poem>
फागु के भीर अभीरन तें गहि, गोविंदै लै गई भीतर गोरी ।
भाय करी मन की पदमाकर, ऊपर नाय अबीर की झोरी ॥
छीन पितंबर कंमर तें, सु बिदा दई मोड़ि कपोलन रोरी ।
नैन नचाई, कह्यौ मुसक्याइ, लला ! फिर खेलन आइयो होरी ॥
</poem>