भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
था हाथ में इक अपने सवा मन का जो सोटा।
 
लोहे की कड़ी जिस पे खड़कती थी सरापा ।
 
कांधे पे चढ़ा झूलना और हाथ में प्याला ।
 
बाज़ार में ले आए दिखाने को तमाशा ।
 
आगे तो हम और पीछे वह था रीछ का बच्चा ।।
Anonymous user