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कानों में दुर, और घुँघरू पड़े पांव के अंदर।
वह डोर भी रेशम की बनाई थी जो पुर ज़र।पुरज़र।
जिस डोर से यारो था बँधा रीच रीछ का बच्चा ।3।
यूं लोग गिरे पड़ते थे सर पांव की सुध भूल ।
गोया वह परी था, कि न था, रीछ का बच्चा।4।
वाँ छोटे-बड़े जितने थे उन सबको रिझाया।
इस ढब से आखाड़े अखाड़े में लड़ा रीछ का बच्चा।10।
ललकारते ही उसने हमें आन लताड़ा।
गह हमने षछाड़ा पछाड़ा उसे, गह उसने पछाड़ा।
एक डेढ़ पहर फिर हुआ कुश्ती का अखाड़ा।
'''शब्दार्थ:'''
सरापा - अपादमस्तकआपादमस्तक
दुर - मोती
मुक़्क़ैश - सोने-चाँदी का काम की हुई
अम्बोह - भीड़
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