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दूसरों से खाए धोखों का
कहे हुए शब्दों के लिए
अनकहे शब्दों के लिए
झुकी आँखों का
उठे हाथों का
घुटी साँसों का
अंत में है
सूरज की रश्मियों से
होड़ न ले पाने का
चाँद की कलाओं को
मात न दे पाने का
सफेदी के झांकने का
उजले चरित्र पर
पड़ोस की गुडिया पर
जवानी चढने का
दिन-रात निगलने का
उभारों को टटोलती
चोर -निगाहों का
हुलसे क्षणों का
फिसले पलों का
डपट खाकर
दाँत निपोरने का
निराशाओं को पाने का
पाई खुशियों ख़ुशियों की
कमियाँ गिनाने का
वरदान पाने का