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Kavita Kosh से
वर्तनी के सम्पादन
मध्य एशिया के व्यापार मार्ग से
जाती है हैं अब भी
बंजारों की टोलियाँ
रेत और धूल के बगूले उडा़तीउडा़तीं
छतनार किसी पेड़ तले
सुरज अपनी लाल देग ले
छिप जाता है चुपके-चुपके
बादलों के छौने
पेड़ों पर पत्ते उचारते हैं
मेहँदियों के वासंती नूपुर
छीन ले जाते हैं सँपोले
गुदड़ी में हीरे की कनी छिपाए
रेत के कच्चे घरौंदों के द्वार पर
बचाती है नागफणियाँ,
इन कहानियों के
रच डालती हैं गीत,
आनेवाली दस-बीस पीढ़ियाँ
गाती रहेंगी सिर जोड़कर जिन्हें।
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