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|रचनाकार=ग़ालिब|संग्रह= दीवाने-ग़ालिब / ग़ालिब
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[[Category:ग़ज़ल]]
<poem>
मैं उन्हें छेड़ूँ और कुछ न कहें
चल निकलते, जो मय पिये होते
मैं उन्हें छेड़ूँ और क़हर हो, या बला हो, जो कुछ न कहें <br>हो चल निकलते जो मय पिये काश कि तुम मेरे लिये होते<br><br>
क़हर हो या बला हो जो कुछ हो <br>मेरी क़िस्मत में ग़म गर इतना था काश कि तुम मेरे लिये दिल भी, या रब, कई दिये होते <br><br>
मेरी क़िस्मत में ग़म गर इतना था <br>दिल भी या रब कई दिये होते <br><br> आ ही जाता वो राह पर , "ग़ालिब" <br>कोई दिन और भी जिये होते <br><br/poem>{{KKMeaning}}
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