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{{KKGlobal}}{{KKFilmSongCategories|वर्ग=देश भक्ति गीत}}{{KKFilmRachna|रचनाकार= जावेद अख़्तर}}<poem>जंग तो चंद रोज होती है - 2, जिन्दगी वर्षों बरसों तलक रोती है<br /> <br />
सन्नाटे की गहरी छाँव, ख़ामोशी से जलते गाँवये नदियों पर टूटे हुए पुल, धरती घायल और व्याकुलये खेत ग़मों से झुलसे हुए, ये खाली रस्ते सहमे हुएये मातम करता सारा समां, ये जलते घर ये काला धुआंमेरे दुश्मन, मेरे भाई, मेरे हमसाये -२ <br />मुझे से तुझ से, हम दोनों से ये जलते घर कुछ कहते हैं <br />बर्बादी के सारे मंजर कुछ कहते हैं, हाय.. अ <br />मेरे दुश्मन, मेरे भाई, मेरे हमसाए.. ओ ओ हो.. हो हो हो <br /> <br />