भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
[[Category:ग़ज़ल]]
<poem>
शब, कि बर्क़े-सोज़ेंसोज़े-दिल<ref>दिल जलाने वाली बिजली</ref> से ज़ोहरा-ए-अब्र<ref>बादल का पित्ता</ref> आब<ref>पानी</ref> था शोला-ए-जव्वालाजवाला<ref>नाचती हुई आग</ref> हर इक हल्क़ा-ए-गिरदाब<ref>जल-भंवरका हर चक्कर</ref> था
वां करम को उज़्रे-बारिश<ref>बारिश का बहाना</ref> था इनागीरे-ख़िराम<ref>गति की लगाम थामे हुए</ref>
वां ख़ुद आराई<ref>आत्मसज्जा</ref> को था मोती पिरोने का ख़याल
यां हुजूमे-अश्क<ref>अश्रु-समूह</ref> में तारे-निगह<ref>निगाह</ref> नायाब<ref>अलभ्यदुर्लभ</ref> था
जल्वा-ए-गुल<ref>फूलों की छटा</ref> ने किया था वां चिराग़ां आबे-जू<ref>पानी की धारा</ref>
यां रबांरवां<ref>बह रहा धाथा</ref> मिज़गाने-चश्मे-तर<ref>भीगी आँखों की पलकें</ref> से ख़ूने-नाब<ref>शुद्द रक्त</ref> था
यां सरे-पुर-शोर<ref>उन्मत्त कड़वाहट भरा सिर</ref> बेख़्वाबी <ref>नींद से जग कर</ref> से था दीवार-जू<ref>दीवार ढूँढना</ref>
वां वो फ़रक़े-नाज़<ref>कोमल सिर</ref> महवे-बालिशे-कमख़्वाब<ref>कीमख़ाब के तकिए पर सोया हुआ</ref> था
यां नफ़स <ref>सांस</ref> करता था रौशन शम्अ-ए-बज़मे-बेख़ुदी<ref>मस्ती की सभा की शमआ़</ref>
जल्वा-ए-गुल वां बिसाते-सोहबते-अहबाब<ref>एकत्र मित्रों का बिछावन</ref> था
ख़ाना-ए-आशिक़<ref>प्रेमी का घर</ref> मगर साज़-ए-सदा-ए-आब<ref>पानी का बाजा</ref> था
नाज़िश-ए-अय्याम-ए -ख़ाकस्तर-नशीनी<ref>धरती पर बैठ कर बिताए दिनों का गर्व</ref> क्या कहूं
पहलूए-अन्देशा<ref>चिंतन की गोद</ref> वक़्फ़<ref>आराम</ref>-ए-बिस्तर-ए-संजाब<ref>मखमल</ref> था
कुछ न की अपने जुनून-ए-नारसा ना-रसा<ref>असहाय पागलपन</ref> ने, वरना यां
ज़र्रा-ज़र्रा<ref>कण-कण</ref> रूकश-ए-ख़ुर्शीद-ए-आलम-तान<ref>सूरज से ईर्ष्या</ref> था