भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
{{KKCatNazm}}
<poem>
इन हाथों की ताज़ीम१ ताज़ीम<ref>सम्मान</ref> करोइन हाथों की तकरीम२ तकरीम<ref>आदर-सत्कार</ref> करो
दुनिया को चलाने वाले हैं
इन हाथों को तस्लीम३ तस्लीम<ref>स्वीकार</ref> करो
तारीख़ के और मशीनों के , पहियों की रवानी इनसे हैतहज़ीब की और तमद्दुन की , भरपूर जवानी इनसे है
दुनिया का फ़साना इनसे है, इन्साँ की कहानी इनसे है
इन हाथों की ताज़ीम <ref>आदर</ref> करो
सदियों से गुज़र कर आये हैं, ये नेक और बद को जानते हैं
ये दोस्त हैं सारे आलम के, पर दुश्मन को पहचानते हैं
खुद शक्ति का अवतार हैं ये, कब गै़र गैर की शक्ति मानते हैं
इन हाथों की ताज़ीम करो
है ज़ख़्म हमारे हाथों के, ये फूल जो हैं गुलदानों में
सूखे हुए प्यासे चुल्लू थे, जो जाम हैं अब मयख़ानों में
टूटी हुई सौ अँगडा़इयों की , मेहराबें <ref>दीवार में चीजें रखने के लिए बनी जगह</ref> हैं ऐवानों४ ऐवानों<ref>महलों में</ref> में
इन हाथों की ताज़ीम करो
राहों की सुनहरी रौशनियाँ, बिजली के जो फैले दामन हैं
फ़ानूस हसीं ऐवानों के, जो रंग और नूर के ख़िरमन <ref>पैदावर</ref> हैं
ये हाथ हमारे जलते हैं, यह हाथ हमारे रौशन हैं
इन हाथों की ताज़ीम करो
खा़मोश हैं ये, खा़मोशी से, सौ बर्बत-ओ-चंग५ चंग<ref>एक तरह का बाजा</ref> बनाते हैं
तारों में राग सुलाते हैं, तबलों में बोल छुपाते हैं
जब साज़ में जुम्बिश होती है, तब हाथ हमारे गाते हैं
इन हाथों की ताज़ीम करो
एजाज़ <ref>चमत्कार</ref> है ये इन हाथों का, रेशम को छुएँ तो आँचल हैपत्थर को छुएँ तो बुत कर दें, कालिक कालिख को छुएँ तो काजल है
मिट्टी को छुएँ तो सोना है, चाँदी को छुएँ तो पायल है
इन हाथों की ताज़ीम करो
बहती हुई बिजली की लहरें, सिमटे हुए गंगा के धारे
धरती के मुक़द्दर के मालिक, मेहनत के उफ़ुक उफ़क<ref>क्षितिज</ref> के सय्यारे६सय्यारे<ref>क्षितिज पर घूमने वाले तारे</ref>
यह चारागराने-दर्दे-जहाँ, सदियों से मगर ख़ुद बेचारे
इन हाथों की ताज़ीम करो
तख़्लीक़७ तख़्लीक़<ref>सृष्टि</ref> यह सोज़े-मेहनत की, और फ़ितरत के शहकार भी हैं
मैदाने-अमल में लेकिन खु़द, ये खा़लिक़ भी मे’मार भी हैं
फूलों से भरे ये शाख़ भी हैं और चलती हुई तलवार भी हैं
इन हाथों की ताज़ीम करो
ये हाथ न हों तो मुह्मल८ मुहमल<ref>अर्थहीन</ref> सब, तहरीरें और तक़रीरें हैं
ये हाथ न हों तो बेमानी, इन्सानों की तक़दीरें हैं
सब हिकमतो-दानिश, इल्मो-हुनर, इन हाथों की तफ़सीरें <ref>टिप्पणी</ref> हैं
इन हाथों की ताज़ीम करो
यह सरहद-सरहद जुड़ते हैं और मुल्कों-मुल्कों जाते हैं
बाँहों में बाँहें डालते हैं और दिल को दिल से मिलाते हैं
फिर ज़ुल्मो-सितम के पैरों की ज़ंजीरे-गराँ९ गराँ<ref>भारी ज़ंजीरें</ref> बन जाते हैं
इन हाथों की ताज़ीम करो
 
१.सम्मान २.आदर-सत्कार ३.स्वीकार ४.महलों में ५.एक तरह का बाजा ६.क्षितिज पर घूमने वाले तारे ७.सृष्टि ८.अर्थहीन ९.भारी ज़ंजीरें
<poem>
{{KKMeaning}}
Delete, Mover, Uploader
894
edits