भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=जगन्नाथदास 'रत्नाकर' |संग्रह=उद्धव-शतक / जगन्नाथ…
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=जगन्नाथदास 'रत्नाकर'
|संग्रह=उद्धव-शतक / जगन्नाथदास 'रत्नाकर'
}}
{{KKCatKavitt}}
<poem>
ब्रज-रजरंजित सरीर सुभ ऊधव कौ
::धाइ बलबीर ह्वै अधीर लपटाए लेत ।
कहै रतनाकर सु प्रेम-मद-माते हेरि
::थरकति बाँह थामि थहरि थिराए लेत ॥
कीरति-कुमारी के दरस-रस सद्य ही की
::छलकनि चाहि पलकनि पुलकाए लेत ।
परन न देत एक बूँद पुहुमी की कौंछि
::पौंछि-पौंछि पट निज नैननि लगाए लेत ॥108॥
</poem>
{{KKRachna
|रचनाकार=जगन्नाथदास 'रत्नाकर'
|संग्रह=उद्धव-शतक / जगन्नाथदास 'रत्नाकर'
}}
{{KKCatKavitt}}
<poem>
ब्रज-रजरंजित सरीर सुभ ऊधव कौ
::धाइ बलबीर ह्वै अधीर लपटाए लेत ।
कहै रतनाकर सु प्रेम-मद-माते हेरि
::थरकति बाँह थामि थहरि थिराए लेत ॥
कीरति-कुमारी के दरस-रस सद्य ही की
::छलकनि चाहि पलकनि पुलकाए लेत ।
परन न देत एक बूँद पुहुमी की कौंछि
::पौंछि-पौंछि पट निज नैननि लगाए लेत ॥108॥
</poem>