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आते कैसे सूने पल
जीवन में ये सूने पल ? !जब लगता सब विश्रृंखल; विशृंखल, तृण, तरु, पृथ्वी, नभमंडल ! नभ-मंडल। :खो देती उर की वीणा :झंकार मधुर जीवन की, :बस साँसों के तारों में :सोती स्मृति सूनेपन की ! की।  
बह जाता बहने का सुख,
लहरों का कलरव, नर्तन,
बढ़ने की अति-इच्छा में
जाता जीवन से जीवन ! जीवन।  :आत्मा है सरिता के भी ,:जिससे सरिता है सरिता; :जल-जल है, लहर-लहर रे, :गति-गति , सृति-सृति चिर भरिता ! -भरिता।क्या यह जीवन ? सागर में जल -भार मुखर भर देना ! कुसुमित -पुलिनों की कीड़ाक्रीड़ा- ब्रीड़ा से तनिक ने लेना ! ?:सागर-संगम में है सुख, :जीवन की गति में भी लय;मेरे क्षण-क्षण के लघु-कण जीवन-लय से हों मधुमय।
सागर संगम में है सुख, जीवन की गति में भी लय, मेरे क्षण-क्षण के लघु कण जीवन लय से हों मधुमय रचनाकाल: जनवरी’ १९३२
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