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Kavita Kosh से
:::मगर जो उत्सुक-मन, झुक-झूमदृगों में मोती की निधि खोल
:::हलाहल पी जाते सह्लादचुकाया था मधुकण का मोल,
:::उन्हें इस विष में होता प्राप्तहलाहल यदि आया है यदि पास
:::अमर मदिरा हृदय का मादक स्वाद।लोहू दूँगा तोल!