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{{KKRachna
|रचनाकार=हरिवंशराय बच्चन
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रहे गुंजित सब दिन, सब काल

नहीं ऐसा कोई भी राग,

रहे जगती सब दिन सब काल

नहीं ऐसी कोई भी आग,


:::गगन का तेजोपुंज, विशाल,

:::जगत के जीवन का आधार

:::असीमित नभ मंडल के बीच

:::सूर्य बुझता-सा एक चिराग।
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