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{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार: [[=साहिर लुधियानवी]][[Category:कविताएँ]]}}[[Category:साहिर लुधियानवीनज़्म]]
अनगिनत लोगों ने दुनिया में मुहब्बत की है <br>कौन कहता है कि सादिक़ <ref>पवित्र</ref> न थे जज़्बे उन के <brref>भावनायें</ref> उनके लेकिन उन के लिये तषीर तशहीर<ref>विज्ञापन</ref> का सामान नहीं <br>क्यूँ के क्योंकि वो लोग भी अपनी ही तरह मुफ़लिस थे <brref>vनिर्धन</ref> थे
ये इमारात-ओ-मक़ाबिर ,<ref>भवन और मक़बरे</ref> ये फ़सीलें, <ref>परिकोटे</ref>ये हिसार <brref>क़िले</ref>मुतल-क़ुल्हुक्म शहनशाहों क़ुलहुक्म<ref>आदेश देने में स्वतन्त्र</ref> शहंशाहों की अज़मत के सुतूँ <brref>वैभव के खम्भे</ref>दामनसीना-ए-दहर पे उस रंग की गुलकारी है <brref>संसार के वक्षस्थल के</ref>के नासूर हैं ,कुहना<ref>पुराने</ref> नासूरजिस में शामिल जज़्ब है <ref>समाया हुआ है</ref> जिसमें तेरे और मेरे अजदाद का ख़ूँ <brref>पूर्वजों<br/ref>का ख़ूँ
मेरी महबूब! उन्हें भी तो मुहब्बत होगी <br>जिनकी सन्नाई <ref>कारीगरी</ref> ने बख़्शी <ref>प्रदान की है</ref> है इसे शक्ल-ए-जमील <brref>सुन्दर रूप</ref>उन के प्यारों के मक़ाबिर <ref>मक़बरे</ref> रहे बेनाम-ओ-नमूद <brref>अनाम और बिना निशान के</ref>आज तक उन पे जलाई न किसी ने क़ंदील <brref>मोमबती<br/ref>
ये चमनज़ार <ref>उद्यान</ref> ये जमुना का किनारा ये महल <br>ये मुनक़्क़श <ref>नक़्क़ाशी किए हुए</ref>दर-ओ-दीवार, ये महराब ये ताक़ <br>इक शहनशाह ने दौलत का सहारा ले कर <br>हम ग़रीबों की मुहब्बत का उड़ाया है मज़ाक <br><br>