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Kavita Kosh से
फटाक !!!!
गुब्बारे के फूटते ही
ताली बजा -बजा कर
खुश होता है टिंकू
और मुँह निचे नीचे किये दुखी एक गरीब इंसान जिसको हो गया एक रुपये रुपए का नुक्सान नुकसान
ये भी क्या माया है
बहुत खुश होते हैं
कुछ जर ज़ार -जर ज़ार रोते हैं
और ये ज़रूरी भी नहीं
ही दुःख देती हैं
कभी - कभी , ख़ुशी भी जान ले लेती है
तुम को देखते ही
आज जलता हूँ
उपले जैसा
धीरे -धीरे धुंवा धुआँ
बनता हुआ
जिसने मुझे अपने आप से
भी अलग कर दिया था
इस तरह तड़पाऐगीतड़पाएगी
जो कभी जीवन का श्रेष्ठ वरदान थी
अभिशाप बन जाएगी
मुझे लगता है
तुमसे खिंचा चला आता है
वो भिखारी भी रोज़ -रोज़ आता है तुम्हारी दुत्कार सुनकर चला जाता है
फिर भी रोज़ -रोज़ आता है
तुम क्या जानो
जिससे सारी दुनिया सुख पाती है
वो सुन्दरता तुम्हारी मुझे
पल -पल जलती जलाती है
अक्सर तुम्हारे साथ चलते -चलते
देखता हूँ
कितनी आँखों की तड़प भरी
इस तरह
बार -बार आहत न होता
अलग -अलग रिश्तों में
लिपटे अनगिनत भिखारियों से
जो आज भी जूझ रहे है
तुम्हारी सुन्दरता की बीमारी से ....
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