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यह मुख या कलुषित काया।
और शत्रु सब, ये कृतघ्न फिर
इनका क्या विश्वास करूँ,
प्रतिहिंसा प्रतिशोध दबा कर
मन ही मन चुपचाप मरूँ।
श्रद्धा के रहते यह संभव
तो फिर शांति मिलेगी मुझको
जहाँ खोजता जाऊँगा।"
जगे सभी जब नव प्रभात में
देखें तो मनु वहाँ नहीं,
'पिता कहाँ' कह खोज रहा था
यह कुमार अब शांत नहीं।
इडा आज अपने को सबसे
अपराधी है समझ रही,
कामायनी मौन बैठी सी
अपने में ही उलझ रही।
''''''''''-- Done By: Dr.Bhawna Kunwar''''''''''
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