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मनुष्यत्व में मज्जित करने युग जीवन के सुख दुख!
पिघला देगी लौह मुष्टि को आत्मा की कोमलता
जब जन बल से रे कहीं बड़ी है मनुष्यत्व की क्षमता!
</poem>
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