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इन्द्र सतत सत्पथ पर देविं देवें मर्त्य हम चरण
दिव्य तुम्हारे ऐश्वर्यों को करें नित ग्रहण!
तुम, उलूक ममता के तम का हटा आवरण
:दान दान पर करता हूँ मैं इन्द्र नित स्तवन
:तुम अपार हो स्तुति से भरता नहीं कभी मन!
:जौ के खेतों कें में ज्यों गायें करतीं विचरण
:देव हमारे उर में सुख से करो तुम रमण!
:सर्व दिशाओं से दो हमको, इन्द्र, चिर अभय
:विजयी हों षड् रिपुओं पर जीवन हो सुखमय!
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