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|रचनाकार=सर्वत एम जमाल
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<poem>
भला ये कोई ढंग है, मिला के हाथ देखिए
तमीज़ तो यही है ना कि पहले ज़ात देखिए

हुज़ूर आप फर्ज़ भी निभाइए मगर जरा
ये थैलियाँ भी देखिए, तअल्लुकात देखिए

कहीं भी सर झुका दिया, नया खुदा बना लिया
गुलाम कौम को मिलेगी कब निजात, देखिए

जब आँधियों का जोर थम गया तो पेड़ बोल उठा
है कौन डाल-डाल कौन पात-पात देखिए

जलाए आप ही ने सब चराग, ठीक है मगर
उजाला-तीरगी हैं कैसे साथ-साथ, देखिए

हर आदमी में ऐब ढूंढना कमाल तो नहीं
कभी हुनर भी देखिए, कभी सिफात देखिए

इसी तरह से मुल्क में रहेगा सर्वत अम्न अब
न कोई जुर्म ढूंढिए, न वारदात देखिए.</poem>
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