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{{KKRachna
|रचनाकार=कमलेश भट्ट 'कमल'
|संग्रह=हाइकू 2009 / गोपालदास "नीरज"
}}
<poem>
दुनिया में सुख की
एक ही रीत रीति ।
आप से मिले
तो लगा क्या मिलना
किसी और से ।!
खुद को दिन रात
रिश्तों से ज्यादा
तनाव बसते है
घरों में अब । !
युग-युगो युगों से
सोए पड़े पहाड़
जागेंगे कब?
शुद्ध आक्सीजन भी
वश न चला ।
भीड़ तो बढ़ी
विरल हो चले है हैं
रिश्ते परंतु ।
रात होते ही
गोलबन्द हो गये
चाँद -सितारे ।
घिर गया है
विषैली लताओं से
जीवन - वृक्ष ।