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हम आंकड़ों आँकड़ों के जंगल में भटक रहे थे उसका निगरां निगराँ था एक बाजीगर जो नोटों पर दस्तखत दस्तख़त करते-करते अचानक हमारी किस्मत पर दस्तखत दस्तख़त करने लगा था
कुछ लोग बताते थे कि जंगल
उसकी दाहिनी आंख आँख में था जिसकी निगरानी वह बायीं आंख बाईं आँख से करता था
जंगल का पत्ता-पत्ता आंकड़ों आँकड़ों में तब्दील हो चुका था
फूल न खूबसूरत थे न बदसूरत
बस उनकी गिनती थी
रूप रंग स्वाद सब आंकड़ों आँकड़ों में बदल चुके थे हमारे निगरां के सपनों में भी शब्द नहीं थे केवल संख्याएं संख्याएँ थीं
वह हर बीमारी हर लाचारी का इलाज
मुखालिफिन को कैद कर लेता था आंकड़ों के पिंजडे में
जिस दिन बढ़ी कीमत नहीं चुका सकने के कारण
वापस लौट गई थी वह नन्हीं लड़की
उसी दिन मुद्रास्फीति घटने की जोरदार खबर ख़बर छपी थी अखबारों अख़बारों में
उसके जहरीले ज़हरीले जबड़ों से रिसते थे खूनआलूद आंकड़ें ख़ूनआलूद आँकड़ें हम जो अर्थशास्त्री न थे मजबूर मज़बूर थे आंकड़ों आँकड़ों की खूनी ख़ूनी बौछार में भीगने को!</poem>