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|रचनाकार=प्रदीप जिलवाने
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}}
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होना तो चाहिये था
ये
कि तुम्हें सबकी फिक्र होती
और हो रहा है ये
कि
मरे जा रहे हैं सब
फिक्र में तुम्हारी।
00
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और हो रहा है ये
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मरे जा रहे हैं सब
फिक्र में तुम्हारी।
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