भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=वीरेन डंगवाल |संग्रह=स्याही ताल / वीरेन डंगवाल }} …
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=वीरेन डंगवाल
|संग्रह=स्याही ताल / वीरेन डंगवाल
}}
<poem>
बिल्ली शरीफ भी हो सकती है कोई चूहा बदमाश भी हो सकता है
चूहे मारना भी बिल्ली का काम समझा जाता है
कुछ लोग तो सिर्फ इसी गुण-धर्म के लिए
बिल्ली पालते हैं
मेरा पता पूछते-पूछते आ ही पहुंचा दुःख
नामुमकिन था उसे झांसा दे पाना
उसे रामलोटन ने बताया होगा
जो गली के बाहर
चाय-बिस्कुट की रेहड़ी लगाता है मुंह-अंधेरे से
अपने छह वर्ष के बेटे के साथ
उसको बिल्ली ने बताया होगा
जो सारी रात गश्त करती है इलाके के घरों में
सब कुछ देखती अपनी पारदर्शी आंखों से
अपनी बिल्ली भाषा में सब कुछ सुनती-समझती-अनुवाद
करती रह-रह लोगों के गंभीर रहस्य
और देर रात की खुसफुसाती टेलीफोन-मंत्रणाएं
रहस्य लोक की वह सम्राज्ञी
सिर्फ उसकी कामातुर चीत्कारें सुनाई दी हैं साल में एकाध बार
कठिन रातों में
उसे मिथुनरत नहीं देखा कभी किसी मनुष्य ने
उसकी इस शुचिता के लिए कदाचरण वाले
गली के कुत्ते भी उसका सम्मान करते हैं
प्रगट शत्रुता के बावजूद
इस पीली-पर-पीली धारीदार खाल वाली
बिल्ली का स्नेह सम्बन्ध रामलोटन के बेटे से मुझे पता है
बाप की नजर बचाकर उसको थोड़ा-बहुत दूध देते
अनेक बार मैंने उसे देखा है
इस देख लेने के लिए मुझसे कुछ अनात्मीयता भी
रखता है वह बालक
बिल्ली को तो खैर बता दिया होगा
पिछवाड़े के अभी खाली पड़े प्लॉट के
झाड़-झंखाड़ और मलबे के बीच
बिल बनाकर रहने वाले मोटे कत्थई चूहे ने
जो कबाड़ के उस ढेर का बौना बादशाह रहा आया
उसकी इजाजत के बिना नामुमकिन
किसी चुहिया का भी पूंछ फटकारना
उस तीस बाय चालीस फुट के
कूड़ा साम्राज्य में
सूअर सरीखी उसकी गरदन और लम्बी कड़ी पूंछ !
रातों में तमाम बार टूटी हुई नींद में
अचकचाए आतंक से उसे मैंने देखा
सतर्क रूआब के साथ अपने कमरे का मुआयना करते
या चांदनी रात में बित्ता भर आंगन में अकारण दौड़ते
बगैर रत्ती-भर डर या शर्म के
उसे मालूम थी मेरी सारी औकात
मेरे खाली-भरे डब्बों के सब भेद
उसे पता थे
उसके चूहा ज्ञानकोश से संचित थीं
कुतरने की तमाम आनुवंशिक प्रविधियां
जिन्हें उसने अपनी आलोचक मेधा से
नई धार दे दी थी
यों उससे भी मेरा एक शत्रुतापूर्ण मैत्री सम्बन्ध था
बीती रात आखिर मार ही डाला ताबड़तोड़ झपट्टों से उसे
पीली-पर-पीली धारीदार बिल्ली ने
नाली के मुहाने पर
हर बार की तरह
कामयाबी से फरार होने के क्षणमात्र पहले
मैं रजाई ओढे़ हूं अपने चूहा विहीन कमरे में
मेरे नथुनों में भर रही है कुतरी हुई रूई की गंध
दम घुट रहा है मेरा
मुझे उबकाई
और रूलाई दोनों आ रही हैं.
00
{{KKRachna
|रचनाकार=वीरेन डंगवाल
|संग्रह=स्याही ताल / वीरेन डंगवाल
}}
<poem>
बिल्ली शरीफ भी हो सकती है कोई चूहा बदमाश भी हो सकता है
चूहे मारना भी बिल्ली का काम समझा जाता है
कुछ लोग तो सिर्फ इसी गुण-धर्म के लिए
बिल्ली पालते हैं
मेरा पता पूछते-पूछते आ ही पहुंचा दुःख
नामुमकिन था उसे झांसा दे पाना
उसे रामलोटन ने बताया होगा
जो गली के बाहर
चाय-बिस्कुट की रेहड़ी लगाता है मुंह-अंधेरे से
अपने छह वर्ष के बेटे के साथ
उसको बिल्ली ने बताया होगा
जो सारी रात गश्त करती है इलाके के घरों में
सब कुछ देखती अपनी पारदर्शी आंखों से
अपनी बिल्ली भाषा में सब कुछ सुनती-समझती-अनुवाद
करती रह-रह लोगों के गंभीर रहस्य
और देर रात की खुसफुसाती टेलीफोन-मंत्रणाएं
रहस्य लोक की वह सम्राज्ञी
सिर्फ उसकी कामातुर चीत्कारें सुनाई दी हैं साल में एकाध बार
कठिन रातों में
उसे मिथुनरत नहीं देखा कभी किसी मनुष्य ने
उसकी इस शुचिता के लिए कदाचरण वाले
गली के कुत्ते भी उसका सम्मान करते हैं
प्रगट शत्रुता के बावजूद
इस पीली-पर-पीली धारीदार खाल वाली
बिल्ली का स्नेह सम्बन्ध रामलोटन के बेटे से मुझे पता है
बाप की नजर बचाकर उसको थोड़ा-बहुत दूध देते
अनेक बार मैंने उसे देखा है
इस देख लेने के लिए मुझसे कुछ अनात्मीयता भी
रखता है वह बालक
बिल्ली को तो खैर बता दिया होगा
पिछवाड़े के अभी खाली पड़े प्लॉट के
झाड़-झंखाड़ और मलबे के बीच
बिल बनाकर रहने वाले मोटे कत्थई चूहे ने
जो कबाड़ के उस ढेर का बौना बादशाह रहा आया
उसकी इजाजत के बिना नामुमकिन
किसी चुहिया का भी पूंछ फटकारना
उस तीस बाय चालीस फुट के
कूड़ा साम्राज्य में
सूअर सरीखी उसकी गरदन और लम्बी कड़ी पूंछ !
रातों में तमाम बार टूटी हुई नींद में
अचकचाए आतंक से उसे मैंने देखा
सतर्क रूआब के साथ अपने कमरे का मुआयना करते
या चांदनी रात में बित्ता भर आंगन में अकारण दौड़ते
बगैर रत्ती-भर डर या शर्म के
उसे मालूम थी मेरी सारी औकात
मेरे खाली-भरे डब्बों के सब भेद
उसे पता थे
उसके चूहा ज्ञानकोश से संचित थीं
कुतरने की तमाम आनुवंशिक प्रविधियां
जिन्हें उसने अपनी आलोचक मेधा से
नई धार दे दी थी
यों उससे भी मेरा एक शत्रुतापूर्ण मैत्री सम्बन्ध था
बीती रात आखिर मार ही डाला ताबड़तोड़ झपट्टों से उसे
पीली-पर-पीली धारीदार बिल्ली ने
नाली के मुहाने पर
हर बार की तरह
कामयाबी से फरार होने के क्षणमात्र पहले
मैं रजाई ओढे़ हूं अपने चूहा विहीन कमरे में
मेरे नथुनों में भर रही है कुतरी हुई रूई की गंध
दम घुट रहा है मेरा
मुझे उबकाई
और रूलाई दोनों आ रही हैं.
00