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Kavita Kosh से
उजला और चमकदार
शौच, स्नान, नाश्ता-भोजन की
कोई ख़ास अहमियत नहीं थी,
वह थोड़ी-सी ऊर्जा इकट्ठी कर
रोज़ काम पर निकल जाता था--
अंदर के आदमी को
बाहर के मज़बूत आदमी से
गाँव में एक नन्हा-सा मटियाला घर
घर के बाहर एक गाय
और हूँहू-बाब-हूँहू
अंदर के बूढ़े आदमी की शक्ल का
एक जवान ग्वाला
उसके बच्चे
वहां खड़े-खड़े
गिलास-भर दूध की बात बाट जोह रहे थे
वे दूध पी-पी, पल-बढ़ रहे थे
और ग्वाला बूढा हो रहा था
मैंने पहली बार देखा कि
अंदर का आदमी
इतना दस्तावेजी था,!
उसके हर हिज्जे पर
कुछ लिखा हुआ था, --
हथेलियों पर
मेहनत की इबारत लिखी हुई थी
बेटियों का ब्याह
और पत्नी की अंत्येष्टि के लिए
महाजन का उधार लिल्खा लिखा हुआ था
मेरी आँखें उसका अंतरंग दीख देख रही थी,
पहली बार मैंने
अंदर के आदमी को
उड़ रहे थे
जिन्हें वह जोड़-जोड़
सामानों के नाम पढ़ रहाथारहा था
और जीवनोपयोगी चीजों को
रेखांकित कर रहा था
जहां वह बनियों के आगे
हाथ जोड़े
हल्दी-नमक और तेल-मसाला
उधार माँग रहा था
किस कदर बाहर आने
और बाहर के आदमी के
हाथ में हाथ डालेडालकर
चलने के लिए
जूझ रहा था