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{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=संतोष मायामोहन |संग्रह=}}{{KKCatKavita}}<poemPoem>मांमाँ
मेरे पास बैठी
बीन रही है धनिये के दाने
( तिनके, कंकड़ )
कर रही है भावों-अभावों की गणना
सआत- सआत ।
हर महीने लाती है
महीने भर का राशन
और हर महीने दोहराती है
यही की कि यही बात ।
'''अनुवाद : मोहन आलोक'''
</poem>