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{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=सुमित्रानंदन पंत।पंतमुख्य रचनाऍं: वीणा|संग्रह= स्वर्णधूलि / सुमित्रानंदन पंत}}{{KKCatKavita}}{{KKCatGeet}}<poem>सुनता हूँ, पल्लवमैंने भी देखा, गुंजन, ग्रम्या, युगांत, युगवाणी, कला और बूढ़ा चॉंदएचिदंबरा, लोकायतन, आदि।काले बादल में रहती चाँदी की रेखा!
:आज दिशा हैं घोर अँधेरी
:नभ में गरज रही रण भेरी,
:चमक रही चपला क्षण-क्षण पर
:झनक रही झिल्ली झन-झन कर!
नाच-नाच आँगन में गाते केकी-केका
काले बादल में लहरी चाँदी की रेखा।
आग लग रही, घात चल रहे, विधि का लेखा!
काले बादल में छिपती चॉंदी चाँदी की रेखा!