भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
करती बार-बार प्रहार:
सामने तरू-मल्लिका मालिका अट्टालिका, प्रकार।प्राकार।
दिवा का तमतमाता रुप;
उठी झुलसती झुलसाती हुई लू,
रूई ज्‍यों जलती हुई भू,
देखा मुझे उस दृष्टि से
जो मार खा रोईं रोई नहीं,
सजा सहज सितार,
सुनी मैंने वह नहीं जो थी सुनी झंकार
एक क्षण के बाद वह कॉंपी सुधरसुघर,
ढुलक माथे से गिरे सीकर,
Anonymous user