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Kavita Kosh से
धुओं से पेट भर लेती थी
गोइंठे-उपले के अलाव पर
पतीली में दल दाल चुराती हुई धुओं का सोंधापन उसमें घोलती थी , उसे यकीन था की कि
धुओं की खुराक
बच्चों को बैदजी से
वह दोबारा फुंकनी सम्हालती थी
और चूल्हे में जान डाल
बड़ा चैन पाती थी,
प्रसन्न-मन कई घन मीटर धुआं
इतनी झक्क सफ़ेद रोटी पोती थी
कि रोटी के कौर को पकड़ी
माई की अन्गुरियाँ अंगुरियाँ भी
सांवरी लगती थी
धुओं ने उसे संतानाबे संतानबे बरस तक
निरोग-आबाद रखा,
उस दिन भी वह धुओं से नहाई
रसोईं से कजरी गुनगुनाते हुए
ओसारे में खटिया पर
आ-लेती लेटी थी,
माई ने उसकी मुस्कराती झुर्रियों में
कोई बड़ा अनिष्ट पढ़ लिया था