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प्रवासी भारतवंिशयों भारतवंशियों नेसात-समुदर् समुद्र् पार
सूरीनाम की धरती पर रचे हैं -
आस्था बनकर
पाषाण प्रतिमा में
वह सरनामी उपासकों की आंखों में
उतरता है साधना की शक्ति बनकर
उतर जाता है -
हर पहर की अजान में
इंसानियत बनकर
प्राथर्ना के शब्दों में
प्रकाश बनकर
उजास का स्वर ढलकर
सरनामी भक्तजनों के
नन्हें घरौंदों में
आस्था का प्रतिरूप है -
बिना भेदभाव के
मानवता के समथर्न में
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