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14:34, 5 अगस्त 2010 {{KKRachna
|रचनाकार=गुलज़ार
|संग्रह = पुखराज / गुलज़ार
}}
<poem>
बारिश होती है तो पानी को भी लग जाते हैं पावँ
दरों दीवार से टकरा के गुज़रता है गली से
और उछलता है छपाकों में
किसी मैच में जीते हुए लड़कों की तरह
जीत कर आते हैं मैच जब गली के लड़के
जूते पहने हुए कैनवास के उछालते हुए गेंदों की तरह
दरों दीवार से टकरा के गुज़रते हैं
वो पानी की छपाकों की तरह
</poem>