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कुछ छिन रहा है / अशोक लव

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घबराहट है
वेदना है
छटपटाहट है
छिन रहा है
बहुत-बहुत प्रिय।

और विवशता है कि
असहाय हैं
मूक दर्शक हैं
न रोक पाने की सामर्थ्य है
न हठ करने का साहस
बस निवेदन और निवेदन
प्रार्थनाएँ ही प्रार्थनाएँ !

कितना असहाय हो जाता है
मनुष्य
और नियति को स्वीकार करने को
हो जाता है बाध्य।
</poem>
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