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|रचनाकार=केदारनाथ अग्रवाल
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घर की फुटन में पड़ी औरतें
 
ज़िन्दगी काटती हैं
 
मर्द की मौह्ब्बत में मिला
 
काल का काला नमक चाटती हैं
 
जीती ज़रूर हैं
 
जीना नहीं जानतीं;
 
मात खातीं-
 
मात देना नहीं जानतीं
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