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Kavita Kosh से
मेरे बाहर आग है,
इस आग का अर्थ जानते हो ?
क्या तपन, क्या दहन,
क्या ज्योति, क्या जलन,
ये अर्थ हैं कोष के, कोषकारों के
जीवन की पाठशाला के नहीं,
जैसे जीवन,
वैसे ही आग का अर्थ है,
कर सकोगे क्या संघर्ष ?
पा सकोगे मुक्ति, माया के मोहजाल से ?
पा सकोगे तो आलोक बिखेरेंगी ज्वालाएँ
नहीं कर सके तो
और
आदमीयत के वजूद को
शेष रह जाएगा, बस वह
जो स्वयं नहीं जानता
कि
वह है, या नहीं है ।
हम
हम प्रतिभा के वरद पुत्र
हम सिद्धहस्त आत्मगोपन में
हम दिन भर करते ब्लात्कार
देते उपदेश ब्रह्मचर्य का
हर संध्या को
हम प्रतिभा के वरद पुत्र
हम सिद्धहस्त आत्मगोपन में
हम दिन भर करते पोषण
जातिवाद का
निर्विकार निरपेक्ष भाव से
करते उद्घाटन
सम्मेलन का
विरोध में वर्भेगद के
हर संध्या को
हम प्रतिभा के वरद पुत्र
हम सिद्धहस्त आत्मगोपन में
हम जनता के चाकर सेवक
हमें है अधिकार
अपने बुत पुजवाने का
मरने पर
बनवाने का समाधि
पाने को श्रद्धा जनता की ।
हम जनता के चाकर
हम सिद्धहस्त आत्मगोपन में
जनता भूखी मरती है
मरने दो
बंगलों में बैठ हमें
राजसी भोजन करने दो, राजभोग चखने दो
जिससे आने पर अवसर
हम छोड़ कर चावल
खा सकें केक, मुर्ग-मुसल्लम
हम नेताओं के वंशज
हम सिद्धहस्त आत्मगोपन में
हम प्रतिपल भजते
रघुपति राघव राजा राम
होते हैं जिसके अर्थ
चोरी हिंसा तेरे नाम
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