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Kavita Kosh से
पेड़ों की छाँव ज़रा और हरी हो गई है,
बाग़ में बग़ीचों में और तरी हो गई है-
राहों पर मेंढक अब सदा नःईं नहीं मिलते हैं
पौधों की शाखों पर काँटे तक खिलते हैं
चन्दा मुस्काता है;